गुरु पूर्णिमा श्लोक 2020 – Guru Purnima Shloka in Hindi, Sanskrit & Marathi with Images for WhatsApp & Facebook
गुरु पूर्णिमा 2020: गुरु पूर्णिमा एक त्यौहार है जो ज्ञान और ज्ञान की विशाल संपत्ति प्रदान करने वाले गुरुओं के सम्मान में मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा भारत और नेपाल में हिंदुओं, बौद्धों और जैनों द्वारा मनाया जाने वाला एक लोकप्रिय त्यौहार है। इस दिन शिष्य या छात्र अपने जीवन के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए अपने दिग्गजों और शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। यह पर्व हर साल आषाढ़ मॉस की पूर्णिमा वाले दिन आता है| इस साल यह पर्व 5 जुलाई के दिन है| इस दिन का भारत में बहुत महत्व है|
गुरु पूर्णिमा श्लोक
तीनों लोक, स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल में ज्ञान देनेवाले गुरु के लिए कोई उपमा नहीं दिखाई देती । गुरु को पारसमणि के जैसा मानते है, तो वह ठीक नहीं है, कारण पारसमणि केवल लोहे को सोना बनाता है, पर स्वयं जैसा नहीं बनाता ! सद्गुरु तो अपने चरणों का आश्रय लेनेवाले शिष्य को अपने जैसा बना देता है; इस लिए गुरुदेव के लिए कोई उपमा नहि है, गुरु तो अलौकिक है ।
Click To Tweetदृष्टान्तो नैव दृष्टस्त्रिभुवनजठरे सद्गुरोर्ज्ञानदातुः स्पर्शश्चेत्तत्र कलप्यः स नयति यदहो स्वहृतामश्मसारम् । न स्पर्शत्वं तथापि श्रितचरगुणयुगे सद्गुरुः स्वीयशिष्ये स्वीयं साम्यं विधते भवति निरुपमस्तेवालौकिकोऽपि ॥
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जो इन्सान गुरु मिलने के बावजुद प्रमादी रहे, वह मूर्ख पानी से भरे हुए सरोवर के पास होते हुए भी प्यासा, घर में अनाज होते हुए भी भूखा, और कल्पवृक्ष के पास रहते हुए भी दरिद्र है ।
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पूर्णे तटाके तृषितः सदैव भूतेपि गेहे क्षुधितः स मूढः । कल्पद्रुमे सत्यपि वै दरिद्रः गुर्वादियोगेऽपि हि यः प्रमादी ॥
Click To Tweetयोगीयों में श्रेष्ठ, श्रुतियों को समजा हुआ, (संसार/सृष्टि) सागर मं समरस हुआ, शांति-क्षमा-दमन ऐसे गुणोंवाला, धर्म में एकनिष्ठ, अपने संसर्ग से शिष्यों के चित्त को शुद्ध करनेवाले, ऐसे सद्गुरु, बिना स्वार्थ अन्य को तारते हैं, और स्वयं भी तर जाते हैं ।
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योगीन्द्रः श्रुतिपारगः समरसाम्भोधौ निमग्नः सदा शान्ति क्षान्ति नितान्त दान्ति निपुणो धर्मैक निष्ठारतः । शिष्याणां शुभचित्त शुद्धिजनकः संसर्ग मात्रेण यः सोऽन्यांस्तारयति स्वयं च तरति स्वार्थं विना सद्गुरुः ॥
Click To Tweetजैसे दूध बगैर गाय, फूल बगैर लता, शील बगैर भार्या, कमल बगैर जल, शम बगैर विद्या, और लोग बगैर नगर शोभा नहीं देते, वैसे हि गुरु बिना शिष्य शोभा नहीं देता ।
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योगिंद्रेंद्र: श्रुती परारार: सममशोध निम्मंघन: सदा शांती अक्षोथी नितीनंत दंती निप्पुनो धर्मक, प्रामाणिकपणे शिष्य चाखणारा: सोने संक्रमण: सोने विविधता स्वार्थ न करता, स्वार्थी न होता;
Click To Tweetगाय न करता दुधाशिवाय, फुलाशिवाय, प्रेम न करता, भैरा, पाणी न कमल पाणी शिवाय, शिक्षणाशिवाय, आणि शहराबाहेरील लोक जोपर्यंत शिक्षकाचा गैरवापर होत नाही तोपर्यंत शिष्य शिक्षकांना शोभत नाही.
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दुग्धेन धेनुः कुसुमेन वल्ली शीलेन भार्या कमलेन तोयम् । गुरुं विना भाति न चैव शिष्यः शमेन विद्या नगरी जनेन ॥
Click To Tweetशरीर, वाणी, बुद्धि, इंद्रिय और मन को संयम में रखकर, हाथ जोडकर गुरु के सन्मुख देखना चाहिए ।
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शरीरं चैव वाचं च बुद्धिन्द्रिय मनांसि च । नियम्य प्राञ्जलिः तिष्ठेत् वीक्षमाणो गुरोर्मुखम् ॥
Click To Tweet'गु'कार याने अंधकार, और 'रु'कार याने तेज; जो अंधकार का (ज्ञान का प्रकाश देकर) निरोध करता है, वही गुरु कहा जाता है ।
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யோகிந்திரா: ஸ்ருதி பர்கார்: சமரசமாத் நிமக்னா: சதா சாந்தி அக்ஷோஷி நித்தியின்ட் தந்தி நிப்புனோ தர்மக், நேர்மையாக. சீஷனின் நல்வாழ்வு: தங்கத்தின் தொற்றுகள்: தங்கம் வெரைட்டி சத்குரு இல்லாமல் தன்னலமற்ற சுயநலம்.
Click To Tweetபசு இல்லாமல் பன்றி இல்லாமல், காதல் இல்லாமல், பாரி, கமால் நீரை இல்லாமல் நீர், கல்வி இல்லாமல், மக்கள் இல்லாமல் நகரம் இல்லாமல் ஆசிரியரை மறைக்கும் வரை, சீடர் ஆசிரியை அலங்கரிக்க மாட்டார்.
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प्रेरणा देनेवाले, सूचन देनेवाले, (सच) बतानेवाले, (रास्ता) दिखानेवाले, शिक्षा देनेवाले, और बोध करानेवाले – ये सब गुरु समान है ।
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बहुत कहने से क्या ? करोडों शास्त्रों से भी क्या ? चित्त की परम् शांति, गुरु के बिना मिलना दुर्लभ है ।
Click To Tweetकिमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च । दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम् ॥
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యోగింద్ర: శృతి పార్గార్: సమస్సమాధోదు నిమగ్న: సదా శాంతి అకశీషి నితినాంట్ దంతి నిప్పూనో ధర్మక్, నిజాయితీగా. శిష్యుడి యొక్క శ్రేయోభిలాషి: బంగారం యొక్క అంటువ్యాధులు: బంగారం వెరైటీ సద్గురు లేకుండా స్వీయ నిస్వార్ధత.
Click To Tweetఆవు లేకుండా పాలు లేకుండా, పువ్వులు లేకుండా ప్రేమ లేకుండా, భార్య, నీటి లేకుండా కమల్ నీరు లేకుండా, విద్యావంతులు లేకుండా, నగరం లేకుండా ప్రజలు ఉపాధ్యాయుని మారువేషాలను తప్ప, శిష్యుడు గురువును అలంకరించడు.
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गुरु के पास हमेशा उनसे छोटे आसन पे बैठना चाहिए । गुरु आते हुए दिखे, तब अपनी मनमानी से नहीं बैठना चाहिए ।
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जो दूसरों को प्रमाद करने से रोकते हैं, स्वयं निष्पाप रास्ते से चलते हैं, हित और कल्याण की कामना रखनेवाले को तत्त्वबोध करते हैं, उन्हें गुरु कहते हैं ।
Click To Tweetनिवर्तयत्यन्यजनं प्रमादतः स्वयं च निष्पापपथे प्रवर्तते । गुणाति तत्त्वं हितमिच्छुरंगिनाम् शिवार्थिनां यः स गुरु र्निगद्यते ॥
Click To Tweetगुरु पूर्णिमा संस्कृत श्लोक
अभिलाषा रखनेवाले, सब भोग करनेवाले, संग्रह करनेवाले, ब्रह्मचर्य का पालन न करनेवाले, और मिथ्या उपदेश करनेवाले, गुरु नहीं है ।
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जगत में अनेक गुरु शिष्य का वित्त हरण करनेवाले होते हैं; परंतु, शिष्य का चित्त हरण करनेवाले गुरु शायद हि दिखाई देते हैं ।
Click To Tweetगुरु शिष्य को जो एखाद अक्षर भी कहे, तो उसके बदले में पृथ्वी का ऐसा कोई धन नहीं, जो देकर गुरु के ऋण में से मुक्त हो सकें ।
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गुरु सब प्राणियों के प्रति वीतराग और मत्सर से रहित होते हैं । वे जीतेन्द्रिय, पवित्र, दक्ष और सदाचारी होते हैं
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